मापन एवं मूल्यांकन

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मापन एवं मूल्यांकन 

मापन एवं मूल्यांकन– विश्व में सबसे पहले लिखित परीक्षा का आयोजन सन 1702 में इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में हुआ ।




       भारत में सबसे पहले लिखित परीक्षा का आयोजन कोलकाता, मुंबई एवं चेन्नई विश्वविद्यालय में वुड डिस्पैच के आगमन पर सन 1854 में प्रवेश परीक्षा के रूप में हुआ  
       मापन एवं मूल्यांकन शब्द का सबसे पहले प्रयोग सन 1890 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक आर.बी.केटल ने किया अतः इन्हें मापन एवं मूल्यांकन का जनक कहा जाता है ।
  मापन मूल्यांकन एवं परीक्षा में संबंध स्थापित करने का कार्य अमेरिका में सन 1904 में ग्रान लुंड ने किया – इनके अनुसार (मूल्यांकन =मापन + परीक्षा) 
 
मूल्यांकन प्रक्रिया को त्रिआयामी प्रक्रिया के रूप में व्यक्त करने का कार्य सन 1956 में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ‘बी.एस.ब्लूम’ ने किया परिभाषाएं :- 
 बी.एस. ब्लूम के अनुसार:- उद्देश्यों की प्राप्ति किस स्तर तक हुई है इसका निर्धारण करना ही मूल्यांकन है ।

 

 

 

कोठारी आयोग के अनुसार :- मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो शिक्षण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग इसका घनिष्ठ संबंध प्राप्य उद्देश्यों से हैं ।

 

 

 

स्टीफेन के अनुसार:- किन्हीं स्वीकृत नियमों द्वारा किसी वस्तु को अंक प्रदान करना मापन है और उसके गुणों के आधार पर निष्कर्ष निकालना मूल्यांकन है ।

 

 

 

कैटल के अनुसार :- मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिससे विद्यार्थियों की उपलब्धियों का निर्धारण किया जाता है ।
 

मापन एवं मूल्यांकन में अंतर                                

  1. मापन का क्षेत्र सीमित होता है जबकी मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक होता है ।
  2. मापन से व्यवहार के किसी एक पक्ष का निर्धारण किया जा सकता है जबकि मूल्यांकन से व्यवहार के सभी पक्षों का निर्धारण किया जाता है 
  3. मापन मात्रात्मक होता है जबकि मूल्यांकन गुणात्मक होता है (कभी-कभी मात्रात्मक भी हो जाता है) ।
  4. मापन से उपचारात्मक शिक्षण संभव नहीं है जबकि मूल्यांकन से ही उपचारात्मक शिक्षण होता है ।
  5. मापन कभी भी किया जा सकता है जबकि मूल्यांकन एक निश्चित समय पर होता है मापन का संबंध पाठ्यक्रम से है जबकि मूल्यांकन का संबंध पाठ्यचर्या से है ।
  6. मापन के आधार पर भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है जबकि मूल्यांकन के आधार पर ही भविष्यवाणी की जाती है .मापन के लिए किसी यंत्र /उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है जबकि मूल्यांकन के लिए यंत्र /उपकरण की आवश्यकता होती है ।
  7.  मापन से उद्देश्यों का निर्धारण होता है जबकि मूल्यांकन से उद्देश्यों की प्राप्ति का निर्धारण होता है ।
  8. .मापन अल्पकालीन प्रक्रिया है जबकि मूल्यांकन दीर्घकालीन प्रक्रिया है ।
  9. मापन से व्यक्तित्व का कोई एक पक्ष निर्धारित होता है मूल्यांकन से संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्धारण होता है ।
  10. .मापन के लिए नियोजन आवश्यक नहीं है जबकि मूल्यांकन बिना नियोजन के संभव नहीं है ।
  11. .मापन एक साधन है जबकि मूल्यांकन साध्य हैं ।
  12. मापन मूल्यांकन का ही एक अंग है जबकि मूल्यांकन में मापन समाहित है ।
  13. मापन कम खर्चीली विधि है जबकि मूल्यांकन बहुत अधिक खर्चीली है             मापन एवं मूल्यांकन की प्रविधियां 
 
1. आंकिक प्रविधियां  
 2.गुणात्मक प्रविधियां

 

 

 

1.आंकिक प्रविधियां
  • मौखिक प्रश्न 
  •  लिखित प्रश्न 
  • प्रायोगिक प्रश्न
लिखित प्रश्न

 

निबंधात्मक प्रश्न 

 

 

दीर्घ उत्तरत्मॎक प्रश्न  

 

 

लघु उत्तरत्मॎक प्रश्न

 

 अतिलघुउत्तरत्मॎक प्रश्न

 

 
2.वस्तुनिष्ठ प्रश्न
             
              प्रत्यास्मरण ( याद करना ) 
  • सामान्य प्रत्यास्मरण प्रश्न ।
  • रिक्त स्थान पूर्ति प्रश्न
 
             प्रत्याभिज्ञान (पहचान करना )
  • – बहुविकल्पी प्रश्न 
  • – मिलान प्रश्न 
  • – वर्गीकरण प्रश्न 
  • – सादृश्य अनुप्रिया प्रश्न 
  • – सत्य,असत्य प्रश्न 
  • – एकांतर क्रम प्रश्न/हां या ना वाले प्रश्न
 
 
2. गुणात्मक प्रविधियां 
 
  • संचई अभिलेख 
  • विद्यार्थी डायरी 
  • साक्षात्कार 
  • अभिलेखीकरण 
  • प्रश्नावली 
  • लिकर्ट संचय मापनी 
  • क्रुडर अधिमान लेखा 
  • विद्यालय अभिलेख 
  • जलोटा बुद्धि परीक्षण 
  • अभिवृत्ति मापनी आदि
  • मापन एवं मूल्यांकन की विशेषताएं

 1. वैधता

  • किसी परीक्षण का निर्माण जिस उद्देश्य से किया गया है। यदि उसका प्रयोग उसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाए तो वह परीक्षण वेध और मूल्यांकन की यह विशेषता वैधता है।
  •  एक कक्षा सात के सामाजिक अध्ययन के प्रश्नपत्र का प्रयोग गलती से कक्षा 6 के मूल्यांकन के लिए कर लिया गया तो मूल्यांकन का यह दोष वैधता संबंधी दोष है।

2 .  विश्वसनीयता

  • किसी परीक्षण की जांच यदि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों से कराई जाए और परिणाम एक समान आए तो वह परीक्षण विश्वसनीय और मूल्यांकन की यह विशेषता विश्वसनीयता है अथवा किसी परिक्षण का प्रयोग एक विद्यार्थी पर भिन्न भिन्न परिस्थितियों में किया जाए किंतु परिणाम एक समान आए तो वह परीक्षण विश्वसनीय और मूल्यांकन की यह विशेषता विश्वसनीयता है।
 
जैसे                                             
  •    एक विद्यार्थी की हिंदी की उत्तर पुस्तिका की जांच अलग-अलग अध्यापकों से कराई गई और सभी ने उसे भिन्न-भिन्न अंक प्रदान किए तो मूल्यांकन का यह दोष विश्वसनीयता संबंधी दोष है।
  •  एक विद्यार्थी से विज्ञान के प्रश्न पत्र को अलग-अलग परिस्थितियों में हल कराया गया किंतु प्रत्येक परिस्थिति में उसे भिन्न-भिन्न  अंक प्राप्त हुए तो मूल्यांकन का यह दोष विश्वसनीयता संबंधी दोष है।


3 . वस्तुनिष्ठता

  • यदि किसी परीक्षा का एकमात्र निष्कर्ष सत्य हो तो वह परीक्षा वस्तुनिष्ठ और मूल्यांकन की यह विशेषता वस्तुनिष्ठता है
  • जैस-     एक प्रश्न पत्र में किसी एक प्रश्न का सभी विद्यार्थियों ने भिन्न-भिन्न उत्तर दिए किंतु सभी के उत्तर सही माने गए।

 

सभी को कुछ ना कुछ अंक अवश्य प्राप्त हुए तो मूल्यांकन का यह दोष वस्तुनिष्ठता संबंधी दोष है।

 

 

 

4. व्यापकता          
यदि कोई परीक्षण संपूर्ण पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करने में सफल हो तो वह परीक्षण व्यापक और मूल्यांकन की यह विशेषता व्यापकता है।

जैसे        एक प्रश्नपत्र में शामिल सभी प्रशन केवल एक ही इकाई से संबंधित है
 एक ही गाय का मूल्यांकन कर पाते हैं।
कुछ विशिष्ट पाठ्य वस्तुओं का ही मूल्यांकन करने में सफल है तो मूल्यांकन का यह दोष व्यापकता संबंधी दोष है।

5.विभेदकता

                       यदि कोई परीक्षा विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर के अनुसार उनका वर्गीकरण करने में सफल है तो वह परीक्षण विभेदक और मूल्यांकन की यह विशेषता विभेदकता है।
जैसे – 
        किसी एक परीक्षा में सभी विद्यार्थी एक समान अंक प्राप्त करते हैं अथवा सभी प्रथम श्रेणी में पास हो जाते हैं , अथवा सभी फेल हो जाते हैं तो मूल्यांकन का यह दोष विभेदकता संबंधी दोष है।


6.मानकता

                   यदि किसी परीक्षण में समय के समान अनुपात में प्रश्नों की संख्या हो तथा सरल ,सामान्य, एवं जटिल प्रश्नों का अंकों के आधार पर अनुपात 1:3:1 हो तो वह परीक्षण मानक और मूल्यांकन की यह विशेषता मानकता है।
जैसे
  • एक प्रश्न पत्र को कक्षा के सभी विद्यार्थी निर्धारित समय में हल नहीं कर पाते हैं अथवा निर्धारित समय से बहुत कम समय में हल कर लेते हैं तो मूल्यांकन का यह दोष मानकता  संबंधी दोष है।
  • एक प्रश्न पत्र में शामिल सभी प्रश्न बहुत ही सरल है अथवा बहुत ही जटिल है जो मूल्यांकन का यह दोष मानकता संबंधित दोष है।

7. स्पष्टता

                यदि किसी परीक्षण की भाषा शैली विद्यार्थी सरलता  से समझ जाते हैं तो वह परीक्षण स्पष्ट और मूल्यांकन की यह विशेषता स्पष्टता है।
जैसे
       एक प्रश्न पत्र की भाषा शैली विद्यार्थी आसानी से समझ नहीं पाते है, अत: उत्तर देने में असफल हो जाते हैं तो मूल्यांकन का यह दोष स्पष्टता का संबंधी दोष है।

8. व्यवहारिकता

                        यदि किसी परीक्षा में विद्यार्थी अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है, तो वह परीक्षण व्यवहारिक और मूल्यांकन की विशेषता व्यवहारिकता है।
जैसे
        एक प्रश्नपत्र में किसी प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने स्मरण क्षमता के आधार पर व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र नहीं है ,तो मूल्यांकन का यह दोष व्यवहारिकता संबंधी दोष है।

 

मूल्यांकन अभिलेखीकरण
Evaluation Record

  • किसी विद्यार्थी को भविष्य का परामर्श अथवा निर्देशन देने के लिए जो अभिलेख अध्यापक अवलोकित करते हैं वह अभिलेखीकरण कहलाता है
  • मूल्यांकन अभिलेखीकरण से विद्यार्थी की प्रगति,उन्नति, अवनति, रुचि स्तर,क्षमता एवं व्यक्तिगत विभिन्नता का निर्धारण होता है 
  • विश्व में सबसे पहले मूल्यांकन का अभिलेखीकरण एवं संचसंचयी अभिलेख का प्रयोग अमेरिकन शिक्षा परिषद द्वारा सन 1928 में किया गया
  • भारत में इसकी शुरुआत सन 1952-53 में गठित मुदालियर आयोग द्वारा हुई 
  • मूल्यांकन अभिलेखीकरण से विद्यार्थी का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है 
  • मूल्यांकन अभिलेखीकरण का सबसे महत्वपूर्ण अंग है संचय अभिलेख हैं

संचय अभिलेख (cumulative Record)

 
 
किसी एक विद्यार्थी का विद्यालय में 1 वर्ष में क्रमबद्ध रूप से प्रगति का अभिलेख रखा जाता है जिसे संचय अभिलेख कहा जाता है 
 
इसमें विद्यार्थी उन्नति अवनति आदि  का 1 वर्ष का निर्धारण किया जाता है  
 
 इसके  दो प्रकार (पक्ष) है –


1.संज्ञानात्मक पक्ष :-

 इसमें विद्यार्थी की शैक्षिक प्रगति का निर्धारण होता है 
जैसे- मासिक परीक्षा,त्रैमासिक परीक्षा, अर्धवार्षिक परीक्षा, वार्षिक परीक्षा आदि की उन्नति अवनति आदि


2. पाठ्य सहगामी पक्ष :- 

इसमें विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में विद्यार्थी की सहभागिता देखी जाती है तथा उसकी उपस्थिति,अनुपस्थिति आदि का विवरण भी रखा जाता है!

निबंधात्मक प्रश्न

– ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर विद्यार्थियों को विस्तृत रूप में देना होता है निबंधात्मक प्रश्न कहलाते हैं
 
 
निबंधात्मक प्रश्नों के गुण एवं दोष
 
गुण
  1. इनका निर्माण करने में अध्यापक को सरलता होती है।
  2.  इनके निर्माण में समय कम लगता है।
  3. कम खर्चीले होते हैं।
  4. नकल करने की संभावना कम रहती है।
  5. विद्यार्थियों को अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर मिलता है।
  6. लेखन कला का विकास होता है ।
  7. सभी उद्देश्यो का मूल्यांकन हो जाता है।
  8. .प्रत्येक स्तर पर उपयोगी है।
  9. विद्यार्थियों के स्मरण शक्ति का विकास होता है।
  10. अभिव्यक्ति क्षमता का विकास होता है।
 
दोष
 
  • .इनकी जांच करने में अध्यापक को कठिनाई होती है।
  • जांच करने में समय अधिक लगता है।
  • .अध्यापक द्वारा पक्षपात करने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
  • इनकी वैधता एवं विश्वसनीयता बहुत कम होती है।
  • .संपूर्ण पाठ्यक्रम का मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
  • इनकी व्यापकता भी कम होती है।
  • .इनमें वस्तुनिष्ठता नहीं पाई जाती है।
  • तार्किक क्षमताओं का विकास नहीं हो पाता है।
  • रटने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
  • .कभी-कभी लेखन कला एवं लेखन गति भी मूल्यांकन मैं बाधक हो जाते हैं।
  • .तर्क चिंतन एवं समझ का विकास नहीं हो पाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

 
*ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर विद्यार्थी तार्किक क्षमताओ के आधार पर देते हैं वस्तुनिष्ठ प्रश्न कहलाते हैं।
*वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की खोज सन 1945 में होराशमेन ने की थी ,अतः इनको वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का जनक कहते हैं।
 
वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के गुण
 
  •  इनकी जांच करने में अध्यापक को सरलता होती है।
  •  जांच करने में समय कम लगता है।
  • अध्यापक द्वारा पक्षपात करने की संभावना कम रहती है।
  • रटने की प्रवृत्ति कम होती है।
  •  तारक एवं चिंतन क्षमता का विकास होता है।
  •  इनकी वैधता एवं विश्वसनीयता बहुत अधिक होती है।
  •  इनमे वस्तुनिष्ठता पायी जाती है।
  •  संपूर्ण पाठ्यक्रम का मूल्यांकन हो जाता है ,अर्थात इनमें व्यापकता भी पाई जाती है।
  •  लेखन कला अथवा लेखन गति मूल्यांकन में बाधक नहीं होती है।
  •  समझ का विकास होता है।
 
वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के दोष
  • . इनका निर्माण करने में अध्यापक को कठिनाई होती है।
  • . निर्माण करने में समय अधिक लगता है।
  •  अधिक खर्चीले होते हैं।
  • नकल करने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
  • कभी-कभी अनुमानित उत्तर भी सही हो जाते हैं।
  •  स्मरण शक्ति का विकास नहीं हो पाता है।
  • लेखन कला का भी विकास नहीं हो पाता है।
  •  विद्यार्थियों को अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता है।
  • सभी उद्देश्यों का मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
  •  प्राथमिक स्तर पर अधिक उपयोगी नहीं है।

    संकलन कर्ता- ओमप्रकाश लववंशी (संगम)  – बारां (राजस्थान)




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