उद्देश्य Objectives
उद्देश्य शब्द का सबसे पहले प्रयोग शैक्षिक प्रशासन के अंतर्गत अमेरिका में सन 1918 में बोबित ने किया था अतः बोबित को उद्देश्य का जनक कहा जाता है।
बोबित के अनुसार :-
उद्देश्य वह साधन है जिसके माध्यम से पाठ्यक्रम रूपी मार्ग पर चलकर विद्यार्थी अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
भारत में सन 1967 तक लक्ष्य उद्देश्य को एक ही माना जाता था किंतु 1967 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय से संबंधित वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग ने विभिन्न विषयों के लिये एक शब्दावली प्रस्तुत की जिसके भाग 2 में लक्ष्य के लिए Aim/ Goal शब्द का प्रयोग किया गया तथा उद्देश्य के लिए भाग 4 में ऑब्जेक्टिव शब्द का प्रयोग किया गया।
तभी से लक्ष्य और उद्देश्य अलग-अलग माने गए हैं।
लक्ष्य एवं उद्देश्य में अंतर
1. लक्ष्य साध्य होते हैं जबकि उद्देश्य साधन होते हैं।
2.लक्ष्य का क्षेत्र व्यापक होता है जबकि उद्देश्य का क्षेत्र सीमित होता है ।
3.लक्ष्य की प्रकृति दार्शनिक होती है जबकि उद्देश्य की प्रकृति मनोवैज्ञानिक होती है।
4.लक्ष्य आदर्शवादी होते हैं जबकि उद्देश्य व्यवहारिक होते हैं ।
5. लक्ष्य सामान्यत परिवर्तित नहीं होते हैं जबकि उद्देश्य परिवर्तित होते रहते हैं ।
6.लक्ष्य प्राप्त होते हैं या नहीं प्राप्त होते हैं यह निश्चित नहीं होता है जबकि उद्देश्य सामान्यतः प्राप्त हो जाते हैं ।
7.लक्ष्य को परिभाषित करना संभव नहीं है जबकि उद्देश्य को सरलता से परिभाषित किया जा सकता है ।
8.लक्ष्य दीर्घकालीन होते हैं, जबकि उद्देश्य अल्पकालीन होते हैं ।
9.लक्ष्य का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता जबकि उद्देश्य का मूल्यांकन होता है ।
10.लक्ष्य का संबंध पाठ्यचर्या से हैं जबकि उद्देश्य का संबंध पाठ्यक्रम से है ।
11.लक्ष्य इकाई में होता है जबकि उद्देश्य बहुसंख्यक होते हैं ।
12.लक्ष्य शिक्षा से संबंधित उद्देश्य से संबंधित होते हैं उद्देश्य शिक्षण से सम्बंधित होते हैं ।
13.लक्ष्य सैद्धान्तिक होते है जबकि उद्देश्य लचीले होते है।
14. लक्ष्य की प्राप्ति उद्देश्यों के माध्यम से ही होती है जबकि उद्देश्य लक्ष्य में समाहित होते है।
उद्देश्य के प्रकार – 2
1. सामान्य उद्देश्य /अप्राप्य उद्देश्य /दीर्घकालीन उद्देश्य :-
ऐसे उद्देश्य जिनकी प्राप्ति सामान्यतः एक कक्षा कक्ष में नहीं हो पाती है सामान्य उद्देश्य कहलाते हैं ,क्योंकि यह आसानी से प्राप्त नहीं होते हैं अतः इन्हें अप्राप्य उद्देश्य भी कहा जाता है ।
इन्हें प्राप्त करने में समय बहुत अधिक लगता है अतः इन्हें दीर्घकालीन उद्देश्य भी कहते हैं। दीर्घकालीन उद्देश्यों को ही लक्ष्य कहा जाता है। जैसे :- ज्ञान ,अवबोध ,ज्ञानोपयोग आदि।
2. विशिष्ट उद्देश्य /प्राप्य उद्देश्य /अल्पकालीन उद्देश्य :-
ऐसे उद्देश्य जिनकी प्राप्ति सामान्यतः एक कक्षा कक्ष में ही हो जाती है विशिष्ट उद्देश्य कहलाते हैं। क्योंकि यह आसानी से प्राप्त हो जाते हैं अतःइन्हें प्राप्य उद्देश्य भी कहा जाता है।
इनको प्राप्त करने में समय बहुत कम लगता है अतः इन्हें अल्पकालीन उद्देश्य भी कहते हैं।
जैसे:- प्रत्यास्मरण,प्रत्याभिज्ञान आदि।
उद्देश्यों का वर्गीकरण
उद्देश्यों का सर्वश्रेष्ठ वर्गीकरण अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी.एस. ब्लूम ने सन 1956 में अपनी पुस्तक टेक्सोनोमी ऑफ एजुकेशन ऑब्जेक्टिव्ज में किया।
इन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 3H के आधार पर उद्देश्यों के तीन प्रकार दिए जो निम्न है
1.ज्ञानात्मक उद्देश्य
2.भावात्मक उद्देश्य
3.क्रियात्मक उद्देश्य
इन उद्देश्यों (ब्लूम के वर्गीकरण) में सबसे पहले परिवर्तन एंडरसन ने किया।
सन 1973 में रॉबर्ट मेगर ने क्रियात्मक पक्ष पर अधिक जोर दिया तथा उद्देश्यों की संख्या 4 निश्चित की
1.ज्ञान
2.समझ
3.अनुप्रयोग
4.रचनात्मकता
प्राप्य उद्देश्य
- ज्ञान
- अवबोध
- ज्ञानोपयोग
- कौशल
- अभिरुचि
- .अभिवृत्ति
.
(उद्देश्यों की कुल संख्या 18 है)
1.ज्ञान
याद करना एवं पहचान करना ही ज्ञान है ।
जैसे – एक बार सुनना,एक बार देखना, एक बार पढ़ना ,परिभाषा याद करना ,नियम ,सिद्धांत ,सूत्र, पाठ आदि याद करना।
ज्ञान के दो प्रकार हैं
A.प्रत्यास्मरण :-
ऐसा ज्ञान जो स्मरण पर आधारित हो प्रत्यास्मरण कहलाता है।
जैसे – शिक्षा मनोविज्ञान के जनक कौन है ?
B.प्रत्याभिज्ञान;-
ऐसा ज्ञान जो देखने पर आधारित हो प्रत्याभिज्ञान कहलाता है।
जैसे :- गाय के कितने पैर होते हैं?
2.अवबोध :-
ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ रूप अर्थात समझ ही अवबोध है।
जैसे – बार बार सुनना ,बार-बार देखना ,बार बार पढ़ना ,विश्लेषण करना ,संश्लेषण करना ,व्याख्या करना, वर्गीकरण करना ,तुलना करना ,अंतर करना ,संबंध स्थापित करना आदि।
3.ज्ञानोपयोग :-
सीखे गए ज्ञान का नवीन परिस्थिति में उपयोग करना या किसी अन्य परिस्थिति में उपयोग करना ही ज्ञानोपयोग है।
जैसे:- नियोजन करना ,निर्णय लेना ,भाषण देना, सलाह अथवा परामर्श देना ,सुझाव देना ,स्वयं के उदाहरण देना, स्वयं के लिए नियम बनाना, समस्या का हल खोजना आदि।
4कौशल :-
क्रियात्मक कार्यों का विकास करना ही कौशल है।
जैसे – चार्ट,चित्र,मानचित्र,मॉडल आदि बनाना, चित्र में रंग भरना,श्यामपट्ट पर लिखना,कविता का सस्वर वाचन करना,अभिनय करना,प्रदर्शन करना,सहायक सामग्री का प्रयोग करना, प्रयोगशाला में प्रयोग करना,अनुशासन स्थापित करना ,नियंत्रण करना,आदत का निर्माण करना आदि कौशल है।
5अभिरुचि :-
शिक्षण में रुचि लेना ही अभिरुचि है।
जैसे- कक्षा में अधिक से अधिक प्रश्न करना ,कक्षा में उपस्थित रहना ,संबंधित पुस्तकें पढ़ना ,पुस्तकालय का उपयोग करना,जिज्ञासा उत्पन्न करना आदि अभिरुचि है।
6अभिवृत्ति :-
दृष्टिकोण का निर्माण करना ही अभिवृत्ति है।
जैसे- उचित दृष्टिकोण अपनाना,भावनाओं का विकास करना,सम्मान करना,आदर करना, परोपकार करना,समूह में रहना,दया करना आदि।
संकलन कर्ता- ओमप्रकाश लववंशी ‘संगम’
Super sir ji
Manna pdega sir es suvida let liy ,,,, good not`s your 🇮🇳💻🎶
अतिउत्तम श्रीमान जी
बहुत बहुत आभार व्यक्त करते है भाई साहब मजा आ गया
शानदार👌👌👌
Test to aata hi nhi notes hi dikte h
Sir test daily hota h kya
गजब भाई कतई शानदार