🐛⛅💩 कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य शब्दों विशेषकर क्रिया से संबंध बताने वाले शब्दों को ‘कारक’ करते हैं इन्हें ‘परसर्ग’ भी कहते हैं कारक के आठ भेद हैं ।
- कर्ता – ने
- कर्म – को
- करण- से, के द्वारा
- संप्रदान (देना) – के लिए,को
- अपादान – से (अलग होने के अर्थ में)
- संबंध -का,की,के,रा,री,रे
- अधिकारण – में, पर
- संबोधन – हे ! ओ! अरे!
1.कर्ता कारक –
कर्ता कारक की विभक्ति ‘ने’ का प्रयोग केवल भूतकालीन सकर्मक क्रियाओं में ही किया जाता है, जब क्रिया वर्तमान काल में या भविष्य काल में आती है तो ‘ने’ विभक्ति का लोप हो जाता है । भूतकालीन अकर्मक क्रिया में भी इसका प्रयोग नहीं होता ।
जैसे –
- राम ने पाठ पढ़ाया (भूतकालीन सकर्मक क्रिया)
- राम पाठ पड़ता है (वर्तमान काल)
2. कर्म कारक व संप्रदान कारक – दोनों की विभक्ति चिन्ह ‘को’ हैं । कर्म कारक की विभक्ति का प्रयोग कर्म के साथ किया जाता है ।
जब कोई वस्तु किसी को देकर वापस ली जाती है तो वहां संप्रदान कारक नहीं होता बल्कि कर्म कारक ही होता है । क्योंकि संप्रदान कारक में वस्तु देकर वापस नहीं ली जाती हैं ।
- रावण ने राम को मारा
- राधा ने पुत्र को वस्त्र पहनाए
- मोहन ने सोहन को समझाया
- दीपक ने धोबी को कपड़े दिए ।
जबकि संप्रदान का शाब्दिक अर्थ है ‘देना’ अथवा ‘संपूर्ण रूप से देना’ अथार्थ किसी को कुछ देने पर अथवा किसी के लिए कोई काम करने पर संप्रदान कारक का प्रयोग होता है । इसमें ‘को’ विभक्ति का प्रयोग ‘के लिए’ के संदर्भ में होता है ।
जैसे
- अनुराग ने भूखे को भोजन दिया
- रोहन ने गीता को जूते दिलवाए
- पापा ने भैया के लिए कमीज खरीदी
- अशोक ने पुजारी को दान दिया
3.करण कारक व अपादान कारक – दोनों के विभक्ति चिन्ह ‘से’ हैं
करण कारक की विभक्ति ‘से’ का प्रयोग साधन के अर्थ में किया जाता है । साधन लगभग निर्जीव होता है तथा कर्ता के साथ होता है । अंग विकार में भी करण कारक होता है
जैसे
- राम कमल से लिखता है
- पंकज चाकू से फल काटता है
- सोहन हवाई जहाज से दिल्ली जाता है
- दिनेश आंखों से अंधा है
जबकि अपादान कारक का प्रयोग अनेक परिस्थितियों में किया जा सकता है जिसमें से मुख्य है
कारण-
- परेशान – मैं गर्मी से परेशान हूँ ।
- शिक्षा /सीखना- सीता गुरुजी से नृत्य सीखती है
- दूरी – कोटा से मेरा घर 100 किमी है।
- शुरुआत- गंगा हिमालय से निकलती है ।
- शर्म या लज्जा – ममता अपने ससुर से शर्माती है ।
- डरना – राधा कुत्तों से डरती है ।
- तुलना – गीता राधिका से सुंदर है ।
- भिन्नता – कमल की शक्ल राम से अलग है ।
संबंध कारक – दो पदों में संबंध बताने वाला कारक संबंध कारक होता है । संबंध कारक की विभक्तियों का प्रयोग अधिकतर प्रयोग सर्वनाम शब्दों के साथ किया जाता है । जैसे हमारा, मेरी, तुम्हारा, आपकी, इसके इत्यादि । जैसे
- तुम्हारा भाई आ रहा है
- उसकी मम्मी कह रही थी
- मेरा भाई कल जयपुर जाएगा।
अधिकरण कारक- इस कारक का प्रयोग अधिकतर वाक्य शुद्धि में किया जाता है ।
इसमें अधिकतर ‘ऊपर’ शब्द के स्थान पर ‘पर’ शब्द का प्रयोग होता है
- आज बजट के ऊपर बहस होगी (अशुद्ध)
- आज बजट पर बहस होगी । (शुद्ध)
- चिड़िया पेड़ में बैठी है । (अशुद्ध)
- चिड़िया पेड़ पर बैठी है। (शुद्ध)
टिप्पणी – दो वस्तुओं में जब आपस में स्पर्श होता है अथार्थ एक दूसरे से संबंधित होती है तो वहां पर ‘पर’ शब्द का प्रयोग होता है तथा जब दो वस्तुओं के मध्य स्थान होता है जो एक दूसरे से संबंधित नहीं होते हैं वहां ‘ऊपर’ शब्द का प्रयोग होता है ।
जैसे –
- मैं छत के ऊपर हूँ । (अशुद्ध)
- मैं छत पर हूँ (शुद्ध)
संबोधन कारक- जिन कारक विभक्तियों का प्रयोग किसी को संबोधित करने में किया जाता है, वहां संबोधन कारक होता है । इसमें विभक्तियों का प्रयोग सदैव वाक्य के प्रारंभ में होता है ।
जैसे – अरे! कहां जा रहे हो ? बच्चों मेरे पास आओ ।
Nice 👌
Very…Nice 👌🏻
Very helpful
Very nice sir ji
Thanks you sir ji
Very good sir